November 2, 2012

क्या ये प्यार है?


क्या ये प्यार है? कई बार कुछ लोगों को देखकर मेरे मन में ये विचार आ ही जाता है और मैं सोचने को मजबूर हो जाती हूँ कि क्या यही प्यार है? सोचती हूँ की दुनिया कितनी सिमट गयी है , लोगों को आजकल फेसबुक पे प्यार हो रहा है। एक तरफ दूरियां कम हो रही हैं, तो दूसरी तरफ बढती नजदीकियां भी मुश्किलें खड़ी कर रही हैं . अब लोग इन्टरनेट पे मिलते हैं, messages से बात होती है, दोस्ती होती है, फिर दोस्ती इतनी बढ़ जाती है की उसे प्यार का नाम मिल जाता है, फिर वही भावनाएं, साथ निभाने की कसमें, फिर कसमों का टूटना, और फिर ??

रिश्ता जब बिना किसी आधार के जुड़ता है तो वो उसी तरह ख़त्म भी हो जाता है। और अगर कोई सोच समझ कर बस आपके जज्बातों के साथ खेलना ही चाहता हो तो ये सब और भी आसान हो जाता है। पहले 'hi', 'hello ' हुआ, फिर 'हाल-चाल' , फिर 'पसंद-नापसंद' , फिर 'जानू खाना खाया या नहीं? देखो खा लेना ज़रूर से वर मैं भी भूखा/भूखी रहूँगा/गी', और फिर 'डार्लिंग समझो मेरे पास टाइम नहीं है बात करने को।'  मतलब पहले किसी से थोड़ी सी जान पहचान हुई, फिर उसकी पसंद -नापसंद को समझा, और फिर शुरू दिल जीतने योग्य की जाने वाली बड़ी बड़ी बातें। कभी कभी ये बातें इतनी लम्बी हो जाती हैं की पहले फेसबुक (लॉग इन थ्रू कंप्यूटर), फिर फेसबुक (लॉग इन थ्रू मोबाइल), फिर हमारे मोबाइल का SMS पैक कब काम आएगा, फिर आवाज़ सुनने की तमन्ना हुई तो कॉल करके ही बात कर लेते हैं!!!  तो भैया 'unlimited talking ' ज़ारी है और इस वक़्त उस लड़के से ज्यादा आदर्शवादी, सिद्धांतवादी,  सुयोग्य व्यक्ति दुनिया में कोई और नहीं और उस लड़की से ज्यादा सुन्दर, समझदार, सुशील कन्या कोई और नहीं ........... (भले ही बड़े की पहले किसी और के बारे में यही धारणा रही हो ! क्या फर्क पड़ता है .........व्हेन लव इस इन एयर ). कुछ दिन, महीनों, (निर्भर करता है कौन कितने वक़्त तक साथ दे पाए) सब बहुत अच्छा चल रहा है, जैसे ज़िन्दगी में कोई नयी उमंग , कोई नया मकसद मिल गया हो और फिर धीरे धीरे इन्ही नजदीकियों में दूरियां घर बनाने लगती हैं क्योंकि संभवतः दोनों में से कोई एक इंसान इस रिश्ते में उतना गंभीर नहीं था जितना की किसी एक ने समझ लिया। फिर सिलसिला शुरू हो जाता है किसी के काम में व्यस्त रहने का और किसी का इंतज़ार में पड़े रहने का !! कोई एक है जो बात करना नहीं चाहता और दूसरा बात किये बिना रहना नहीं चाहता। कोई एक है जो ये सच स्वीकार करना नहीं चाहता की उसने कभी प्यार किया ही नहीं था और कोई एक है जो ये सच समझना ही नहीं चाहता ......................सपने टूटते हैं, भावनाएं आहत  होती है, सच है कि दुःख तो बहुत होता है। कई बार तो नौबत जान देने की आ जाती है, लोग निराशा के अँधेरे में चले जाते हैं (depression), डॉक्टर की मदद लेनी पड़  जाती है, किसी का ज़िन्दगी से विश्वास उठ जाता है, किसी का प्यार से, और कोई सकरात्मक सोच लिए फिर से नयी दिशा में कदम बढाता ह।


पर निष्कर्ष ये की ये किसी/कोई वाले बन्दे न तो पहले कुछ महान कार्य कर रहे थे और न ही अभी (break up के  बाद?).................... तो क्या ज़िन्दगी में सबसे महत्त्वपूर्ण काम बस यही होता है ? किसी से प्यार करो, शादी करके घर बसा लो, नौकरी मिल जाये, और बस रहो सुकून से? क्या इसके आगे ज़िन्दगी नहीं? पहली बात तो ये की "इंसान की सही पहचान उसकी कही हुई बड़ी बड़ी बातों से नहीं बल्कि उसके स्वभाव की छोटी छोटी आदतों से होती है" , इसलिए अगर आप सिर्फ फेसबुक message या फ़ोन पे कही किसी की बड़ी बड़ी बातों पे विश्वास करके उसे बहुत ऊंचा दर्ज़ा देने जा रहे हैं अपने जीवन में तो एक बार फिर से सोच लीजिये। क्या ज़रूरी हैं कि सच भी ऐसा ही होगा? जब आप किसी से मिले नहीं, किसी को जानते नहीं, तो सिर्फ उसकी बातों पे भरोसा करके अपनी भावनाएं उस इंसान के साथ जोड़ लेना क्या उचित होगा? और फिर क्या होगा जब उसकी बातें उसकी चरित्र के विपरीत निकली? मुझे ये लगता है की अच्छा बोलना बहुत आसान होता है, परन्तु जो आप बोल रहे हैं उसे अपने स्वभाव में लाना और वैसा ही जीवन जीना बहुत मुश्किल होता है। और ये अपेक्षा आप किसी ऐसे इंसान से कैसे कर सकते हैं जिसका अधिकाँश समय बस आपको message करने में और आपसे बात करने में जा रहा है? और आपको इस बात पे कितना भरोसा है की वो आपके सिवा किसी और से भी बात करने में इतना ही वक़्त नहीं दे रहा होगा? 

दूसरी बात, जब आप किसी से बात करने में इतना वक़्त दे ही रहे हैं तो क्या कभी आपने रुक कर ये सोचा की ये कितना उपयुक्त है? क्या आपको नहीं लगता की जो वक़्त आपने किसी की फ़ालतू बकवास (अच्छा बकवास नहीं प्यार भरी बातें ही सही) या किसी से यु ही ज़िन्दगी की बातें discuss करने में, या  जताने वाली सामान्य बातों (जैसे तुमने खाना खाया या नहीं ? खाया तो क्या खाया ? और नहीं खाया तो क्यों नहीं खाया? ), मतलब आपने अपना जो कीमती वक़्त इन बातों को करने में दिया, क्या उसका इससे बेहतर और कोई उपयोग नहीं हो सकता था ? यही सब बातें बेमानी लगने लगती हैं जब मालूम चलता है की आप जिसे अपनी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी ख़ुशी समझ बैठे थे असल में तो वो इंसान सिर्फ आपके जज्बातों का फायदा उठा रहा था? तो फिर इतना ज्यादा वक़्त आप किसी और पे बर्बाद करने की जगह खुद पे ही दें तो क्या ज्यादा बेहतर नहीं होगा? 

पहले इन्टरनेट चाहिए होता है स्कूल/ कॉलेज के प्रोजेक्ट के लिए, प्रेजेंटेशन के लिए, और फिर इस्तेमाल होने लगता है सोशल नेटवर्किंग साइट्स के लिए, चैटिंग के लिए ! मैं ये नहीं कह रही की ये पूर्णतया गलत है न ही मैं इन्टरनेट या सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खिलाफ हूँ। पढाई के साथ अन्य चीज़ों के लिए इन्टरनेट का इस्तेमाल गलत नहीं है और न ही किसी से सोशल नेटवर्किंग साइट्स पे दोस्ती करना गलत है, और न ही किसी से चैटिंग करना गलत है, परन्तु "अधिकता हर चीज़ की बुरी होती है।" किसी को बिना जाने समझे उस पर अँधा विश्वास कर लेना गलत है। वो भी तब जब इससे आपकी भावनाएं जुडी हों। 

बहुत आसान होता है किसी की पसंद-नापसंद को समझना और फिर उसी के अनुरूप बात करना अगर सामने वाली के इरादे नेक न हो .........और लोग इसे प्यार समझ लेते हैं। "ओह माय गॉड ! उसकी पसंद मेरी पसंद से कितनी मिलती है। वी आर मेड फॉर ईच अदर ." अरे भैया कुछ पसंद सबकी कॉमन होती हैं, तो क्या हुआ अगर मुझे एकांत में रहना पसंद है और आपको भी ! और फिर सामने वाले ने तो बहुत अच्छे से आपकी हर पसंद का निरीक्षण किया है। धीरे धीरे यही सब बातें इतना गंभीर रूप ले लेतीं हैं कि उनसे बहार निकलना मुश्किल हो जाता है। 

उस पर सहयोग देते हैं प्यार के, मिलन के, जुदाई के, संदेशों से भरे फेसबुक के पेज और बोनस हमारे आजकल के टीवी serials और मूवीज। सब ऐसा दिखाते हैं जैसे दुनिया में प्यार करने और शादी करने से ज्यादा ज़रूरी काम तो कुछ और है ही नहीं। मूवीज की तो बात ही न करें उनका लेवल थोडा ज्यादा ही हाई हो जाता है ! पर हमारे टीवी सीरिअल्स कम नहीं हैं, पहले शुरुआत होगी एक गरीब घर से किसी सामाजिक समस्या को लेकर, फिर उस गरीब लड़की/लड़के को प्यार होगा किसी अमीर लड़के/लड़की से, फिर प्यार में कठिनाईयां , शादी में रुकावटें, और फिर अंत में प्यार की जीत, हो गयी शादी, लड़का-लड़की दोनों अमीर ..........समस्या समाप्त। अरे भैया थोडा ब्रेक लो आखिर ये अमीर लोग काम क्या करते हैं? हमेशा तो घर में रहते हैं या सीरिअल की नायक/नायिका के साथ ? फिर अगला प्रश्न एक अमीर घर में शादी करके सिर्फ एक व्यक्ति की समस्या का ही तो समाधान हुआ और बाकी के लोगो का क्या जो वही सामाजिक समस्याएं झेल रहे हों ?

सब कुछ बहुत अच्छा लगता है, जब तक यथार्थ के धरातल पे न रखा जाये। कितने ही लोग ऐसे होते हैं कि कॉलेज के समय या कभी भी किसी से प्यार करते हैं, उस वक़्त उनका प्यार उसी एक इंसान के लिए सच्चा होता है, उसके लिए करवा चौथ भी रह लेंगे, और फिर पता चलता है कि शादी तो किसी और से की ! अब मुझे कोई ये बताये की पहले वाला प्यार सच्चा था या शादी के बाद वाला ? पहले किसी के लिए करवा चौथ किया अब किसी और के लिए? इतना आसान भी नहीं होता जीवन में किसी एक की जगह किसी दुसरे को दे देना और वो भी तब जब की वो एक आपके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण रहा हो !!

कुछ लोग तो और भी ज्यादा होशियार होते हैं, वो दोस्ती ही करते हैं अपना कोई स्वार्थ सिद्ध करने के लिए और काम पूरा होने के बाद टाटा बाय बाय ! जैसे की कॉलेज में कोई पढने में बहुत अच्छा हुआ तो प्यार कर लो, एग्जाम में अच्छे नंबर मिलना थोडा आसान, और फिर कॉलेज ख़तम तो प्यार भी ख़तम ...........ऐसे ही और भी कई उदाहरण देखने को मिल जायेंगे। कुछ ऐसे भी होते हैं जिनका प्यार बहुत मज़बूत होता है, वो शादी भी करते हैं, फिर शादी के 2-3 साल बाद पता लगता है कि किसी और से इससे भी ज्यादा सच्चा प्यार हो गया, तो भैया तलाक भी कर लेते हैं !!! जितने लोग उतनी कहानी और सबकी कहानी वही ...........

मैं ये नहीं कह रही कि सबको प्यार में धोखा मिलता है या सबका प्यार झूठा होता है। बस कभी इंसान गलत मिल जाता है, कभी मंजिलें अलग हो जाती हैं, और कभी परिस्थितियाँ ही विपरीत हो जाती हैं। प्यार तो एक बहुत ही खूबसूरत एहसास है जो की सभी को महसूस होना ही चाहिए। प्यार इतना छोटा शब्द नहीं जो किसी एक इंसान या किसी एक रिश्ते पे ही सिमट जाये। प्रेम तो बहुत पावन होता है, पवित्र होता है। सबसे पहले तो आप अपने माता-पिता से प्रेमा करण सीखिए, फिर अपने आप से, फिर अपने परिवार के हर सदस्य से जिन्होंने आज तक आपका इतना साथ दिया, फिर अपने आस-पास के हर जीव से, हर चीज़ से प्रेम करके देखिये! सच मानिए, एक अदभुत अनुभूति होगी। और जब आप प्रेम का सही अर्थ समझने लगे तो अपने लिए एक जीवन साथी चुने , चाहे पहले प्रेम करें फिर जीवन भर साथ निभाएं, या पहले जीवन भर साथ निभाने की कसमें खा लें, फिर प्रेम करें। किसी को प्रेम करना इतना कठिन नहीं के उसके लिए आपको किसी की पसंद-नापसंद, व्यवहार, आदतों,विचारों का निरीक्षण करना पड़े ...............और फिर "प्यार तो अँधा होता है और जो सोच समझ कर किया जाए वो प्यार नहीं होता।" प्यार तो वो अहसास है जिसमे आप किसी को अपनी हर चीज़ देकर भी अफ़सोस नहीं करते, क्योंकि प्यार लेना तो जानता ही नहीं है वो सिर्फ देना जानता है। प्यार वो भावना है जो लोगो को एक दुसरे की परवाह करना सिखाता है, एक दुसरे को सम्मान देना सिखाता है, और सबसे बड़ी बात की प्यार में इंसान के लिए अपनी ख़ुशी से ज्यादा अहमियत दुसरे की ख़ुशी की हो जाती हैं।

पर हमारा मुख्य मुद्दा ही यही है, की लोग प्रेम का सही अर्थ ही भूल गए हैं। प्यार का मेरे लिए जो अर्थ है वो सामने वाले के लिए नहीं, उसके लिए शायद प्रेम का अर्थ उतना पावन उतना श्रेष्ठ न हो, वो मूवीज और नोवेल्स से प्रेरित हो !! और ज़िन्दगी सिर्फ इतनी सी ही तो नहीं, घर बसाने के सिवा भी बहुत से काम हैं करने को। "और भी काम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा।" कभी अपने आस-पास उन लोगो को देखिये जिन्हें दो वक़्त का खाना तक नहीं नसीब होता और फिर मुझे बताइयेगा की आपके पास ज्यादा दुःख हैं या उनके? कभी ऐसे बच्चे का दर्द महसूस करियेगा जो खिलोनो से खेलने की उम्र में किसी ढाबे में काम करते हुए रोज़ अपने मालिक की डांट सुनता हो और फिर मुझे बताइयेगा कि आपका दर्द कितना बड़ा है?  कभी ऐसे दुधमुंहे बच्चे को देखिएगा जिसकी माँ उसे कड़ी धुप में सड़क किनारे लिटाकर गड्ढा खोद रही होती है और फिर मुझसे कहियेगा कि आपको कोई प्यार नहीं करता? कभी उस बूढ़े इंसान के मन के भाव समझिएगा जो कडकडाती ठण्ड में सिर्फ एक फटी हुई शर्ट में खुले आसमान के नीची बैठा रहता है या वो बूढा व्यक्ति जो शायद ढंग से चल नहीं सकता फिर भी रिक्शा चलाता है और फिर मुझे बताइयेगा की आपको कितनी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है? कभी उस माँ को दिन-रात घर-घर जाकर झाड़ू पोंछा करते और बर्तन मांजते देखिएगा जो सिर्फ अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए पैसे जमा करना चाहती है और फिर मुझसे कहियेगा की आपके पास वक़्त की कमी है?

उस जानवर के दर्द को महसूस करके देखिये जिसे कसाई रोज़ काटता है , उस जानवर की मेहनत देखिये जो तांगा चलता है, ये लोग तो बेवजह अपने मालिक से मार भी खाते हैं और उन्हें कुछ फायदा भी नहीं .......पर खैर वो तो जानवर हैं, पर हम तो इंसान है? आप गर्लफ्रेंड /बॉयफ्रेंड बनाने में इतने व्यस्त हैं या न बना पाने की वजह से इतने दुखी हैं की फर्क ही नहीं पड़ता देश में क्या हो रहा है। जितना फर्क पड़ता है वो बस दोस्तों के साथ बहस में और फेसबुक कमेंट्स तक ही सीमित है। क्या हमारा फ़र्ज़ नहीं बनता की इससे आगे बढ़कर कुछ करें? कुछ ऐसा जिससे हमारे माता-पिता को हम पर नाज़ हो? हमारे देश को हम पर गर्व हो? और खुद हम लोगो को अपने ऊपर फख्र हो?

एक बार सोचकर देखिएगा ?

-अपराजिता 

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