August 3, 2011

झूठ की पहचान

झूठ बोलना किसी भी मायने में अच्छा नहीं होता, पर सोचने वाली बात ये भी है की हम लोग झूठ को कैसे पहचानते हैं. कई तरीके हो सकते हैं. एक तो आपको पता है कि सच क्या है और आप जान जाते हैं की सामने वाला व्यक्ति आपसे झूठ बोल रहा है. कभी कभी किसी के बात करने के ढंग से और हाव भाव से हम लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि ये इंसान हमें उलझाने की कोशिश कर रहा है और हमसे झूठ बोल रहा है. तो स्वतः ही हमारी नज़रों में उस इन्सान के प्रति अविश्वास का भाव आ जाता है. एक और तरीक होता है जब हमें लगता है की सामने वाला व्यक्ति हमसे झूठ बोल रहा है पर हमें सच भी नहीं पता होता है. मतलब की हम भ्रम की स्थिति में आ जाते हैं. 

मुझे तो पहला तरीका बहुत पसंद है. सच में जब आपको पता हो की सच क्या है, उसके बावजूद कोई इंसान झूठ बोलता ही जाए तो उस झूठ को सुनने में भी बड़ा आनंद आता है. आखिर उस इंसान की सचाई जो खुलकर सामने आ रही होती है. हमें भी तो ये जाने का हक़ है न कि सामने वाला व्यक्ति किस स्तर का है और कहाँ तक जा सकता है. इंसान की बिलकुल सही पहचान इस अवसर पे आप कर सकते हैं. तो अगली बार जब कोई आपके साथ ऐसा झूठ बोले जो आपको पता हो की सच नहीं है! तो ये मौका यूँ  ही हाथ से मत जाने दीजियेगा. उस इंसान को परखने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता....

अब दूसरे तरीके पे भी ज़रा गौर करते हैं. असल में इस तरीके में झूठ और सच की पहचान इस बात पे भी निर्भर करती है कि आप सामने वाले के लहजे और भाव मुद्राओं को समझने में कितने समर्थ हैं. क्योंकि  अगर आपको ये विश्वास भी है कि सामने वाला व्यक्ति आपसे झूठ बोल रहा है तो भी धोखे की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. हो सकता है आपसे गलती हो रही हो ! उस इंसान के बात करने का ढंग  ही यही हो? मैंने कई बार देखा है कि कुछ लोग अपने आप को कुछ ज्यादा समझदार दिखाने के चक्कर में अक्सर इस ढंग से बात करते हैं कि बात प्रभावशाली नज़र आने की बजाय झूठी नज़र आने लगती है. लेकिन सतर्क रहिये, ज़रूरी नहीं कि आप गलत ही हैं. खुद पे विश्वास करिए, अक्सर यही होता है कि जो लोग आप पर हावी होने की कोशिश करें, या बार बार सिर्फ एक ही बात पे जोर दें, या बात करते समय इधर उधर देखें, वो अक्सर झूठ बोल रहे होते हैं. तो आप आसानी से पहचान सकते हैं झूठ बोलने वाले लोगों को. और अगर आपने सही पहचाना तो सच मानिए आप बहुत भाग्यशाली हैं क्यूंकि आप एक झूठे दोस्त को अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल करने से बच गए.

एक तरह से देखा जाए तो ये दूसरा तरीका हमारे जीवन में बहुत उपयोगी साबित हो सकता है. इससे हमें ये पहचानने में आसानी हो जाएगी की हमें अपने जीवन में किसका साथ निभाना है और किसका छोड़ना है. पर फिर भी किसी के बारे में अपनी राय कायम करने से पहले ये बहुत ज़रूरी होता है की अच्छे से ठोक बजा कर देख लिया जाये कहीं ऐसा न हो की गलती से हम एक सच्चा दोस्त खो दे. पर हाँ फिर भी ये तरीका कारगर ही है क्यूंकि अगर हमें किसी पे ये शक  है ये वो हमसे झूठ बोल रहा है तो हम उसपर विश्वास नहीं कर सकते. और जहां विश्वास न हो वहाँ विश्वास टूटने का खतरा भी नहीं रहता और न ही अपनों के धोखा देने का दर्द. फायदे ही फायदे..........

दो तरीकों के फायदे निकसान तो देख ही लिए तो भला तीसरे को ही क्यों छोड़ दें? इसे भी अपना कर देखते हैं ज़रा. ये स्थिति अक्सर तब उत्पन्न होती है जब झूठ बोलने वाला इंसान कोई अजनबी नहीं हमारा जान पहचान का होता है और हमारा दोस्त ही होता है. जिसपे हम बहुत विश्वास करते हैं , कभी कभी खुद से भी ज्यादा. पर अचानक ऐसा लगने लगता है की वही इंसान हमसे झूठ बोल रहा है, हमसे कुछ छिपा रहा है! हालांकि हम खुद भी ये विश्वास नहीं कर पाते की वो इंसान हमसे झूठ बोल सकता है, पर फिर भी हमारे मन में शक का कीड़ा तो प्रवेश कर ही चुका होता है, जो धीरे धीरे रिश्तों को खोखला करने लगता है...

अगर आप भी ऐसी स्थिति में हैं, तो सावधान हो जाइये. क्योंकि ये सबसे खतरनाक स्थिति है, जो आपके एक सच्चे रिश्ते को तोड़ भी सकती है और आपको एक झूठे रिश्ते से आज़ाद भी कर सकती है..... पर ये आप पर निर्भर करता है की आप सच के करीब जा रहे हैं या सच से और भी दूर हो रहे हैं. इस स्थिति में कोई भी निर्णय लेने से पहले अच्छी तरह सोचना और अपने रिश्ते की अहमियत को समझना बहुत ज़रूरी है. ज़ल्दबाजी में लिए गए निर्णय से आप खुद को मुश्किल में डाल सकते है .......... यकीन नहीं हो रहा आपको? हम बताते हैं कैसे.........

कई बार हमें ऐसा लगता है की जिस इंसान पे हम भरोसा कर रहे हैं वो ही हमसे झूठ बोल रहा है और हमारी नज़रों में उसके प्रति अविश्वास आ जाता है. पर ऐसा सिर्फ हमारा भ्रम होता है. असल में तो उस इंसान ने सच ही कहा होता है पर हमने  समझने में गलती की होती है या फिर परिस्थितयां ऐसी हो जाती हैं की हमें वो सच झूठ नज़र आने लगता है. और जब ऐसी स्थिति आती है तो एक सच्चा रिश्ता अविश्वास के घेरे में आ जाता है या टूट भी जाता है. हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. हम इतनी ज़ल्दी अंदाज़ा नहीं लगा सकते की सामने वाले ने झूठ बोला.

एक छोटा सा घटनाक्रम बताती हु मैं आपको इसी तरह का, "एक दिन मेरे purse में सौ रुपये ज्यादा थे. मुझे नहीं पता था की वो कहाँ से आये. मेरी दोस्त को कुछ ज़रूरत थी शायद, उसने मुझसे पूछा तुम्हारे पास सौ रुपये हैं. मैंने अपना purse देखा तो उसमे पैसे थे. बस यूँ  ही सौ रुपये ज्यादा देखकर आश्चर्य हुआ तो बोल दिया अरे ये सौ की नोट कहाँ से आ गयी मेरे पास. घर पहुंचे तो पता चला की एक दिन दीदी मेरा purse लेकर कुछ सामान खरीदने गयी थी तो पापा ने उसे सौ रुपये दिए थे जो उसने मेरे purse में रखे रहने दिए. अब अगले दिन मेरी दोस्त ने पूछा, "पता चला वो सौ की नोट किसकी थी?" मेरी कम बोलने की आदत है. मैंने कहा, "दीदी के." अब कुछ ऐसा हुआ की उसके बाद एक दिन और मेरी फ्रेंड ने मुझसे पूछा की वो सौ रुपये किसके थे? अब मेरा जवाब था, "पापा के."...........  अब मुझे नहीं पता की मैंने किस बार झूठ बोला पर उसने दूसरी बार में मुझसे कहा, "इसका मतलब तुमने उस दिन मुझसे झूठ बोला था?"...........

तो झूठ ऐसा भी हो सकता है जब कि आपकी दोस्त ने झूठ बोला ही नहीं पर फिर भी आपको लगा की वो झूठ कह रहा/रही है. तो आप किसी शक में अपने सच्चे दोस्तों को मत खो दीजियेगा क्योंकि रिश्ते अनमोल होते हैं और उन्हें सच झूठ के तराजू में नहीं तोला जा सकता......

-अपराजिता 

3 comments:

  1. another nice one.. great ji.. :)

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  2. Aparajita ji ,
    Aapne jo tarika bataya sach pata lagane ka vo sabhi thik hai,aapko nazar pahachanana aa jaye agar, to aapse koai bhi ghooth nahi bol sakta.
    Sach insan ki nazar mai likha hota hai ki vo sach bol raha hai ya phir ghooth bol raha hai.

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