मैंने अपने स्कूल की किसी किताब में एक बार पढ़ा था कि , "दूसरों के संग हमेशा वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा आप उनसे अपने प्रति चाहते हैं." मैं तब बहुत छोटी थी पर किताबों में लिखी हुई बातों का अनुपालन करने कि कोशिश बहुत करती थी. लेकिन ज़िन्दगी में बचपन से लेकर आजतक मैंने बस यही समझा कि आप किसी के साथ कितना भी अच्छा व्यवहार करें पर लोग आपके साथ वैसे ही व्यवहार करते हैं जो उनका स्वभाव होता है. तो बेहतर यही है कि आप भी हमेशा अपने स्वभाव के अनुसार ही व्यवहार करें.
यदि फूल का स्वभाव खुशबू बिखेरना है तो वो वातावरण को सुगन्धित ही करेगा. पर अब क्यूकि फूल सबको खुशबू देता है इसीलिए हम काँटों से भी ये अपेक्षा नहीं रख सकते की वो भी बदले में खुशबू ही दें. वो नहीं कर सकते क्योंकि खुशबू देना उसका स्वभाव नहीं है, खुशबू तो फूल देता है......काँटों का स्वभाव तो चुभना है और वो चुभेगा ही, फिर आप भले ही उसे कितने भी प्यार से रखो....
बस इसी तरह हमें भी अपनी ज़िन्दगी में फूल की तरह सिर्फ अपने स्वभाव के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए. और जिन लोगों का व्यवहार काँटों की तरह चुभता है उन्हें क्षमा कर देना चाहिए क्योंकि उन्होंने बस वैसा ही किया जो उनका स्वभाव है...........
अगर फूल भी कांटे को सबक सिखाने के लिए चुभने लगे या अपनी पंखुड़ियों को सिकोड़कर काँटा बना ले, तो फिर वो अपना अस्तित्व ही खो देगा. उसकी तो पहचान ही बदल जाएगी, दुनिया में एक फूल कम हो जायेगा और एक काँटा बढ़ जायेगा.
अगर फूल भी कांटे को सबक सिखाने के लिए चुभने लगे या अपनी पंखुड़ियों को सिकोड़कर काँटा बना ले, तो फिर वो अपना अस्तित्व ही खो देगा. उसकी तो पहचान ही बदल जाएगी, दुनिया में एक फूल कम हो जायेगा और एक काँटा बढ़ जायेगा.
इसीलिए अगर भविष्य में आप किसी बुरे व्यक्ति को सबक सिखाने के लिए उसके साथ बुरा बर्ताव करने चलें तो एक बात याद रखियेगा की इससे आपका ही नुक्सान होगा. आप अपना अस्तित्व खो देंगे क्योंकि आपका तो स्वभाव ही नहीं है ये.......आप तो उस बुरे व्यक्ति को सबक सिखाने के लिए उसके जैसा बर्ताव कर रहे हैं. और ये मत भूलिए की ऐसा करके आप दुनिया में बुरे लोगों की संख्या बढ़ा रहे हैं और उस व्यक्ति की ही मदद कर रहे हैं. सोचने वाली बात ये है की, 'जब बुरे लोग बुराई का साथ नहीं छोडते, तो भला अच्छे लोग अच्छी का साथ क्यों छोडें?'
आग को बुझाने के लिए पानी को पानी ही बने रहना होगा, वो आग बनकर आग को नहीं बुझा सकता. दुनिया में जितनी भी चीज़ें हैं, जो भी पशु-पक्षी, जानवर हैं, और जितने भी इंसान हैं, सबका दुनिया में अपना एक महत्व है और उसके बिना इस सृष्टि की कल्पना करना भी असंभव है. आप भी अपने महत्व को समझिये. अगर बनाने वाले ने आपको जानवर नहीं इंसान बनाया तो उसके पीछे भी एक कारन है. अगर आपका स्वभाव आपके आस-पास के लोगों से मेल नहीं खाता, तो उसकी भी एक वजह है.
वजह एक ये भी हो सकती है की इश्वर खुद ये नहीं चाहते की दुनिया में सब लोग एक जैसे हो. ज़ाहिर सी बात है अगर सब एक ही जैसे हो जायेंगे, हर बात के लिए एक ही जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे, हर काम एक ही ढंग से पूरा करेंगे, कोई भिन्नता ही नहीं रह जाएगी, तो भला जीवन में रह ही क्या जायेगा? फिर तो कोई समस्या ही नहीं आएगी, सबको पता रहा करेगा की अभी ऐसा हुआ है तो इसके बाद कैसा होगा. जैसे आजकल के टी.वी. सीरियल्स की कहानी पहले ही पता लग जाती है.....कोई उत्सुकता ही नहीं रह जाएगी, कोई जिज्ञासा नहीं, सही गलत का अंतर भी नहीं,..........क्या आप ऐसी दुनिया में रहना चाहेंगे?
मुझे तो नहीं रहना... मुझे अच्छा लगता है, सही-गलत का फर्क समझना और फिर सही राह पे चलना, मुझे अच्छा लगता है मुश्किल वक़्त से गुज़रना और अपनी हर समस्या का समाधान ढूंढ लेना, मुझे अच्छा लगता है कुछ खोने के डर से डरना और फिर उस चीज़ को पाकर खुश हो जाना............मुझे अच्छा लगता है...........! हाँ मुझे अच्छा लगता है अपनी ज़िन्दगी अपने ढंग से जीना, अपने स्वभाव के अनुसार ही व्यवहार करना, मुझे अच्छा लगता है....................
- अपराजिता